
पोटका (पूर्वी सिंहभूम):- झारखंड अलग राज्य आंदोलन में कई नेताओं के नाम इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी रहे, जिनका योगदान भले ही दस्तावेजों में दर्ज न हो, परंतु आंदोलन की आत्मा में वे गहरे तक समाए हुए हैं। उन्हीं में से एक थे स्वर्गीय लखी चरण कुंडू — एक संघर्षशील समाजसेवी, जननेता और आंदोलनकारी जिनका नाम अक्सर झारखंड की राजनीति में अनसुना रह जाता है।
गंगाडीह गांव (पोटका प्रखंड) निवासी लखी बाबू न सिर्फ एक जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता थे, बल्कि झारखंड आंदोलन के दौरान उनका घर एक रणनीतिक केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता था, जहां बड़ी बैठकें होती थीं और आंदोलन की आगे की दिशा तय की जाती थी।
उनके करीबी मित्रों में स्वर्गीय निर्मल महतो, शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा और सुनील महतो जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। लखी बाबू ने हर मौके पर अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ बुलंद की, लेकिन राजनीतिक इतिहास की मुख्यधारा में उनका नाम कहीं खो सा गया।
झारखंड आंदोलन में उनके समर्पण और नेतृत्व के बावजूद, अब तक उन्हें न तो राज्य स्तर पर कोई मान्यता मिली है और न ही उनकी स्मृति को संरक्षित करने का प्रयास किया गया है। झारखंड की आने वाली पीढ़ियों को उनके जैसे गुमनाम नायकों के बारे में जानने और प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
जनमानस की यह भी मांग है कि झारखंड सरकार को लखी चरण कुंडू जैसे आंदोलनकारियों के योगदान को आधिकारिक रूप से स्वीकार कर उन्हें उचित सम्मान देना चाहिए।