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प्रकृति और कृषि से जुड़ा पर्व: रोहिन परब की परंपराएं और महत्व

Inरोहिन परब:- झारखंड और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रकृति और कृषि से गहराई से जुड़ी एक विशेष परंपरा ‘रोहिन परब’ बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाई जाती है। जेठ महीने की तेरहवीं तिथि से आरंभ होकर यह पर्व सात दिनों तक चलता है, जो ग्रामीण संस्कृति और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक है।

प्राकृतिक संतुलन और पारंपरिक आस्था का संगम

रोहिन परब केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह समाज के प्रकृति प्रेम, कृषि जीवन और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का भी जीवंत उदाहरण है। इस पर्व में विशेष रूप से महिलाएं भोर सुबह उठकर घर, आंगन और गोहाल की सफाई करती हैं। फिर गोबर से नुड़ा (पवित्र लेप) कर घर के चारों ओर चार अँगुली की गोबर रेखा खींची जाती है, ताकि कीड़े-मकोड़े और सरीसृपों का प्रवेश रोका जा सके।

धान-चावल की पूजा और खेतों की मिट्टी का सम्मान

इस पर्व के दौरान घर में रखे गए धान-चावल और नाप-जोख के बर्तन जैसे डोल, बड़सी, डेंगा आदि को गुंड़ी/चुनी और सिंदूर से सजाया जाता है। इन्हें बड़े श्रद्धा से पूर्वजों के प्रतीक भूतपिंड़हा के समक्ष रखा जाता है।

खेतों में जाकर तीन मुट्ठी धान अर्पित किए जाते हैं, जिससे यह संदेश दिया जाता है कि खेत और प्रकृति ही जीवन का आधार हैं। शाम को परंपरा अनुसार अपने या गुस्टी भाइयों के खेत से ‘रोहिन माटि’ (पवित्र मिट्टी) लाकर घर लाया जाता है, जो खेतों में पूर्वजों के श्रम और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

संस्कार और समाज का अद्भुत मिलन

रोहिन परब सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का उदाहरण है। यह पर्व नई पीढ़ी को यह सिखाने का माध्यम है कि हमारी जड़ें कहाँ हैं और जीवन का असली आधार क्या है। खेत, मिट्टी, गोबर, परंपरा और परिवार—इन सभी का महत्व इस पर्व के जरिए उभरकर सामने आता है।

पर्व के बहाने जीवन से जुड़ाव

जहां आजकल लोग आधुनिकता में व्यस्त हैं, वहीं रोहिन परब जैसे पर्व हमें हमारी मिट्टी, खेती, और पूर्वजों की परंपरा से जोड़ते हैं। यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति और श्रम का सम्मान करना ही जीवन की सच्ची समृद्धि है।


🔔 रोहिन परब की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। आइए, इस पर्व के बहाने हम फिर से प्रकृति और परंपरा से जुड़ें।

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